मजदूर विरोधी नीतियों के खिलाफ सैहब सोसायटी वर्करज यूनियन सम्बंधित सीटू का नगर निगम शिमला के बाहर जोरदार प्रदर्शन

सैहब सोसाइटी वर्करज़ यूनियन के बैनर तले सैंकड़ों सैहब व आउटसोर्स कर्मियों ने अपनी मांगों को लेकर व नगर निगम प्रशासन की तानाशाही व मजदूर विरोधी नीतियों के खिलाफ नगर निगम कार्यालय डीसी ऑफिस पर जोरदार प्रदर्शन किया। प्रदर्शन में सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा, सीटू कोषाध्यक्ष बालक राम, यूनियन अध्यक्ष जसवंत सिंह, महासचिव ओमप्रकाश गर्ग, कोषाध्यक्ष नरेश, सलाहकार पाला राम मट्टू, हिमी देवी, राम प्रकाश, रंजीव कुठियाला, सुनील, योगेश, भरत, पवन, नरेंद्र, अमित भाटिया, रूपा, पूनम, शारदा, देवी सिंह, सूरत राम, नरेंद्र, राकेश, राहुल, शिव राम, बूटा राम, विक्रम, दिगम्बर, मनोज, अजित, चंदू लाल, दिनेश, धर्म चंद,नीरज, ललित, दलविंद्र, मदन, इंद्र, प्रेम, राजीव, खूब राम, अरविंद आदि शामिल रहे। 

सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा, कोषाध्यक्ष बालक राम, यूनियन अध्यक्ष जसवंत सिंह व महासचिव ओमप्रकाश गर्ग ने कहा कि अगर सैहब सोसाइटी का निजीकरण अथवा आउटसोर्स करने की कोशिश की गई तो मजदूर बेमियादी हड़ताल पर चले जाएंगे व शिमला शहर में कार्य पूरी तरह ठप्प कर देंगे। उन्होंने हैरानी व्यक्त की है कि नगर निगम प्रशासन सैहब के बाय लॉज़ के खिलाफ कार्य कर रहा है व सैहब के कार्य की आउटसोर्सिंग करने की साज़िश रच रहा है। उन्होंने कहा कि जो ढाई करोड़ रुपये नगर निगम घरों की  मैपिंग हेतु क्यू आर कोड स्कैनिंग के लिए खर्च करना चाहता है उतने पैसे में 150 अतिरिक्त मजदूरों की भर्त्ती हो सकती है जिस से शहर को और ज़्यादा स्वच्छ रखने में मदद मिलेगी व कार्यरत मजदूरों पर काम का बोझ घटेगा। इतने पैसे से सभी सैहब व आउटसोर्स कर्मियों को तीन वर्ष तक 15 हज़ार रुपये बोनस दिया जा सकता है। यह सब कमीशनखोरी व ठेकेदारी प्रथा को बढ़ाने के उद्देश्य से किया जा रहा है। नगर निगम प्रशासन सरकारी पैसे का दुरुपयोग करना चाहता है जिसे सहन नहीं किया जाएगा। उन्होंने कहा कि सैहब मजदूरों व सुपरवाइजरों का भारी आर्थिक व मानसिक शोषण हो रहा है। उन्होंने कहा कि हर महीने एक दर्जन सुपरवाइजरों व सैंकड़ों आउटसोर्स कर्मियों का वेतन रोका जा रहा है जोकि वेतन भुगतान अधिनियम 1936 का उल्लंघन है। सुपरवाइजरों व गारबेज कलेक्टरों के हर महीने वेतन को रोकने के नगर निगम आयुक्त के निर्णय को श्रम अधिकारी शिमला द्वारा गैर कानूनी घोषित किया जा चुका है परन्तु इसके बावजूद वह तानाशाही कर रहे हैं। आयुक्त आए दिन सुपरवाइजरों को मानसिक तौर पर प्रताड़ित करने के लिए कारण बताओ नोटिस जारी कर रहे हैं जोकि गैर कानूनी है। वह श्रम विभाग के आदेशों की खुली उल्लंघना कर रहे हैं इसलिए श्रम अधिकारी को तुरन्त आयुक्त पर कोड ऑफ सिविल प्रोसीजर 1908 के तहत कार्रवाई अमल में लानी चाहिए। उन्होंने कहा कि नगर निगम आयुक्त मजदूरों द्वारा दिए गए 32 सूत्रीय मांग पत्र के ज़रिए उठाई जा रही आवाज़ को दबाना चाहते हैं जिसे किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा व इसके खिलाफ सैहब कर्मी हड़ताल पर जाने का पूरा मन बना चुके हैं।  प्रशासन द्वारा हर महीने सुपरवाइजरों व आउटसोर्स कर्मियों के वेतन को रोकने तथा सैहब कर्मियों के वेतन को 7 तारीख के बाद देने की परंपरा कानून विरोधी है। अगर यह परंपरा बन्द न की गयी तो मजदूर हड़ताल पर उतर जाएंगे। 

उन्होंने मांग की है कि सैहब वर्करज़ को नियमित कर्मचारी घोषित किया जाए। उन्हें 15वें भारतीय श्रम सम्मेलन, सुप्रीम कोर्ट के सन 1992 के आदेश, सातवें वेतन आयोग की जस्टिस माथुर की सिफारिशों व 26 अक्तूबर 2016 के माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेश अनुसार 26 हज़ार वेतन दिया जाए। उन्हें अतिरिक्त कार्य का अतिरिक्त वेतन दिया जाए। उन्हें कानूनी रूप से 39 छुट्टियां दी जाएं। सैहब में आउटसोर्स में कार्यरत कर्मियों को सैहब के अंतर्गत लाया जाए व उन्हें समय पर वेतन दिया जाए। सैहब कर्मियों को 4- 9 - 14 का लाभ दिया जाए। सभी सैहब सुपरवाइजरों व मजदूरों को सरकार द्वारा घोषित वेतन दिया जाए। सुपरवाइजरों व मजदूरों के लिए पदोन्नति नीति बनाई जाए। उनकी ईपीएफ की बकाया राशि उनके खाते में जमा की जाए। उनसे अतिरिक्त कार्य करवाना बन्द किया जाए। उन्होंने मांग की है कि सैहब एजीएम की बैठक तुरन्त बुलाई जाए व सैहब कर्मियों की मांगों को पूर्ण किया जाए।

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