केन्द्रीय बजट पर जनवादी महिला समिति की प्रतिक्रिया, मोदी सरकार के अमृत काल मे महिलाओं के लिए कोई जगह नहीं
*प्रैस विज्ञप्ति* अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति हिमाचल प्रदेश राज्य कमेटी
केंद्रीय बजट 2022-2023: मोदी सरकार के ‘‘अमृत काल’’ में महिलाओं के लिए कोई जगह नहीं
अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति (एडवा) उस अति निर्दयता की कड़ी निंदा करती है जिसके द्वारा भारत सरकार ने बजट बनाने की अत्यंत महत्वपूर्ण कवायद की है। इस साल के आर्थिक सर्वेक्षण की तरह यह बजट भाषण भी लोगों को धोखा दे रहा है और उनकी वास्तविक चिंताओं को अनदेखा कर रहा है।
इस बजट में सामाजिक वास्तविकता को एकदम से अनदेखा कर दिया गया है यह इस तथ्य से स्पष्ट है कि सरकारी व्यय जो 2021-22 के संशोधित अनुमानों में सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 16 प्रतिशत था उससे घटकर 2022-2023 में 15.2 प्रतिशत कर दिया गया है। जेडर बजट भी 2021-22 के लिए संशोधित अनुमानों के सकल घरेलू उत्पाद के 0.71 प्रतिशत से घटाकर 2022-2023 के बजटीय अनुमानों में सकल घरेलू उत्पाद का 0.66 प्रतिशत कर दिया गया है। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के लिए आबंटन 2022-23 में कुल अनुमानित व्यय के 0.10 प्रतिशत से कम है। महिलाओं के खिलाफ हिंसा की बढ़ती घटनाओं के चलते यह ज़रूरी था कि मिशन शक्ति, समर्थ और वात्सल्य को बढ़े हुए आवंटन प्राप्त हों। लेकिन, इन सबका संयुक्त बजट कुल व्यय के 1 प्रतिशत से भी कम है।
इन योजनाओं या स्कीमों के लाभार्थियों की एक बड़ी संख्या महिलाओं की है जिनमें मनरेगा, राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम और अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अल्पसंख्यकों और अन्य कमजोर वर्गों के कल्याण के लिए जारी योजनाएं शामिल हैं। इन योजनाओं पर संयुक्त व्यय 2021-22 के कुल संशोधित व्यय के 3.2 प्रतिशत से घटकर 2022-2023 में बजट आवंटन में 2.5 प्रतिशत हो गया है। इससे पता चलता है कि ‘‘अमृत काल’’ में सरकार के दृष्टिकोण में महिलाओं के लिए कोई जगह नहीं है।
सरकार के प्रस्तावों में बेरोजगारी की समस्याओं को हल करने के लिए किसी भी प्रकार का कोई सकारात्मक कदम नहीं उठाया गया है। विशेष रूप से, मनरेगा का आवंटन, जो संकट के समय में महिलाओं को रोजगार प्रदान करने के लिए है, 2021-22 के संशोधित अनुमानों की तुलना में 14 प्रतिशत कम हो गया है। यह याद रखना चाहिये कि पिछले बजट में इस आवंटन में लगभग 40 प्रतिशत की कमी आई थी। इसके अलावा, शहरीकरण पर जोर रोजगार सृजन के लिए किसी भी सहायता के लिए जिम्मेदार नहीं है। इस बजट में शहरी रोजगार गारंटी योजना की सभी मांगों को नजरअंदाज कर दिया गया है। यद्यपि मंत्री महोदय ने समावेशी विकास पर जोर दिया, लेकिन महिलाओं की सामाजिक सुरक्षा के लिए वास्तविकता में कोई ठोस आबंटन नहीं किया गया है। कामकाजी महिलाओं के लिए कोई महत्वपूर्ण कर रियायतें भी नहीं हैं।
ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत की स्थिति पिछले साल काफी खराब हो गई है यह जानने के बावजूद खाद्य सब्सिडी में 16 प्रतिशत की कमी की गयी है। एलपीजी सब्सिडी को पिछले साल चरणबद्ध तरीके से समाप्त कर दिया गया था, जिससे कीमतों में एक वर्ष में 200 रुपये प्रति सिलेंडर से अधिक की अभूतपूर्व वृद्धि हुई थी। इसके अलावा, पुनर्निहित मध्याह्न भोजन योजना या पीएम पोषण योजना के लिए आबंटन अपरिवर्तित रहा है। सक्षम-पोषण 20 (सभी आईसीडीएस कार्यक्रमों को मिलाकर) के लिए आबंटन भी लगभग समान रहा है। हालांकि, यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि सरकार इस पैसे का उपयोग बच्चों को अधिक भोजन प्रदान करने या आईसीडीएस श्रमिकों के लिए बेहतर मजदूरी प्रदान करने के लिए नहीं कर रही है, बल्कि वह पोषण के बजाय आईटी और बुनियादी ढांचे पर सारा ध्यान लगाते हुए 2 लाख ‘‘स्मार्ट आंगनवाडियां’’ बनाना चाहती है। आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के अधिकारों और मांगों पर ध्यान नहीं दिया गया है।
महामारी में छात्राओं को भारी नुकसान उठाना पड़ा है, खासकर ऑनलाइन शिक्षा को बढ़ावा देने के कारण। इस बजट में लड़कियों की सुरक्षित शिक्षा के लिए बुनियादी ढांचे में सुधार हेतु अधिक धन आवंटित करके स्कूलों और कॉलेजों को खोलकर उन्हे सक्षम बनाने के लिए लगभग कुछ भी नहीं है। बल्कि यह बजट बेशर्मी से लड़की या महिला विरोधी नई शिक्षा नीति को लागू करना चाहता है, और बड़े पैमाने पर ऑनलाइन और आभासी शिक्षा को बढ़ावा देता है। बजट में टेलीविजन, ई-विद्या और डिजिटल विश्वविद्यालय के माध्यम से शिक्षा की परिकल्पना की गई है। छात्राओं के लिए शैक्षिक कार्यक्रमों और खेलों के लिए आवश्यक वित्तपोषण के स्तर में ठहराव का तात्पर्य है कि शिक्षा के लिए किये गये बजटीय आवंटन को छात्रवृत्तियों और भौतिक बुनियादी ढांचे के विस्तार से हटाकर ऑनलाइन शिक्षा की ओर मोड दिया जाएगा, और छात्राओं की जरूरतों को अनदेखा किया जाएगा।
बजट 2022-23 दरअसल देश की महिलाओं, किसानों, मजदूरों और कर्मचारियों की चिंताओं की पूरी तरह से अवमानना है। कॉर्पोरेट कर के सभी रूपों में तीन प्रतिशत की कमी आई है, इस प्रकार कॉर्पोरेट घरानों को ‘‘अमृत काल’’ के रास्ते पर एक पुरस्कार मिल गया है। कई प्रतिष्ठित संगठनों से उपलब्ध नवीनतम आंकड़ों ने देश में बढ़ती असमानताओं की गहरी खाइयों को सामने लाया है। जिसमें स्पष्ट रूप से दिख रहा है कि अमीरों की आय बढ रही है और उन श्रमिकों और किसानों के परिवारों की आय गिर रही हैं, जो आबादी का 80 प्रतिशत से अधिक हैं। बेरोजगारी की दर अब तक के उच्च स्तर पर है, दिसंबर 2021 तक महिलाओं की बेरोजगारी शहरी क्षेत्रों में 19.9 प्रतिशत और ग्रामीण क्षेत्रों में 12.8 प्रतिशत तक पहुंच गयी है। देश के कोने-कोने से बढ़ती कर्जदारी और भुखमरी की खबरें आ रही हैं। लेकिन भाजपा-आरएसएस सरकार को इनमें से किसी भी प्रकार की चिंताजनक स्थितियों से कोई फर्क नहीं पड़ रहा है।
अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति देश के जनतांत्रिक समाज के सभी वर्गों से मोदी सरकार की दुर्भावनापूर्ण मंशा को बेनकाब करने और आगामी चुनावों में उनकी नवउदारवादी नीतियों को हराने का आह्वान करती है। एआईडीडब्ल्यूए-डीवाईएफआई-एसएफआई इकाइयां इस जनविरोधी बजट के खिलाफ पूरे देश में विरोध प्रदर्शन करेंगी।
अध्यक्ष। सचिव
रीना सिंह। फालमा चौहान
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