आजाद भारत का प्रथम युद्ध- किसान आंदोलन

किसान आंदोलन की नींव  इस देश के किसानों ने बल्कि सत्ता के घोड़े पर सवार इस देश के सत्ताधीशों ने रखी जब सताधीश  पुंजीपतियों के दबाव में आकर देश के किसानों की जमीन  कानूनी रूप से कारपोरेट घरानों को सौंपने के सपने सजाने लगे , और किसानो की जमीन की बेदखली की तैयारी कर रहे थे, देश के किसानों ने जैसे ही सरकार का फैसला सुना देश  का किसान अंचभित रह गया किसान जो अपनी जमीन को मां का दर्जा देता  है वोअपनी मां को कैसे किसी के हाथ में जाने देता , वो भी उस  देश का किसान जिस देश की 80% जनता कृषि पर निर्भर हो ,
 सरकार के इस किसान विरोधी फैसले  के खिलाफ  किसान ने  लडाई का रास्ता अख्तियार किया, अखिल भारतीय किसान सभा  के प्रयासों से संयुक्त किसान मोर्चे का गठन किया गया इस मोर्चे में  छोटे किसान, बडे किसान मझौले किसानों को एक मंच पर  एकत्रित किया गया और समी सबकी समस्याओं और सुझावों को तहरिज दी गई, इसी के साथ शुरू हुआ आजाद भारत का ऐतिहासिक आन्दोलन, छोटी छोटी बैठकों, चर्चा और  महापंचायत कर के  किसानों की लामबंदीयां शुरू की गई
सरकार के फैसले का विरोध करने के लिए किसानों ने देश की राजधानी  दिल्ली की तरफ कूच करने का निर्णय लिया और इसके लिए संविधान दिवस, 26 नवंबर का दिन तय किया गया, देश भर के किसानों ने दिल्ली के सिंघू बार्डर और टिकरी बार्डर की तरफ कूच की तैयारियों शुरू कर दी देश के विभिन्न हिस्सों से किसान  ट्र्को, ट्रेक्टर ट्राली और निजी वाहनों, व कुछ एक किसानों ने तो पैदल ही  दिल्ली बार्डर की तरफ रवानगी कर दी 
देखते ही देखते दिल्ली बार्डर पर  सैकड़ों ही नही हजारों भी नहीं बल्कि लाखों लाख किसान , करोना जैसी महामारी मे भी  दिल्ली बार्डर पर जमा हो गए देश के बड़े बड़े हाईवे जाम हो गये सरकार को जैसे ही किसानों की लामबंदी की भनक लगी तो सरकार ने सरकारी तंत्र का सहारा लेकर  किसान आंदोलन को तोड़ने की भरसक कोशिशें  की



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