कौमी एकता का प्रतीक था आजादी का आन्दोलन विजेंद्र मेहरा
आज भारत 75वां स्वतन्त्रता दिवस मना रहा है। भारत देश की आज़ादी के लिए असंख्य कुर्बानियां हुई हैं। इस देश की आज़ादी के लिए कम्युनिस्टों और कांग्रेस के नेतृत्व में मजदूर,किसान व मेहनतकश तबके ने अनेकों बलिदान दिए हैं। इन बलिदानों में फांसियां,अंग्रेजों की बंदूकों से निकली गोलियों से शहादतें,कालापानी की सज़ा व लंबे जेल पीरियड सब शामिल हैं। आज़ादी के आंदोलन की सबसे बड़ी खासियत सभी धर्मों की एकता व कौमी भाईचारेे के ज़रिए अंग्रेजों से संघर्ष रहा। आज़ादी के आंदोलन की परंपरा,इतिहास व विरासत तो देखिए। एक तरफ सिख युवक भगत सिंह,करतार सिंह सराभा व अन्य देश के लिए शहादत देते हैं तो दूसरी तरफ हिन्दू युवक राम प्रसाद बिस्मिल,भगवती चरण वोहरा,चंद्रशेखर आज़ाद व अन्य देश के लिए कुर्बान होते हैं। तीसरी तरफ मुस्लिम युवक अशफाकुल्लाह खान व अन्य वतन की मिट्टी के लिए कुर्बान हो जाते हैं।
देश की आज़ादी का पहला प्रस्ताव अहमदाबाद में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 36वें अधिवेशन में एक मुस्लिम क्रांतिकारी मौलाना हसरत मोहानी व एक हिन्दू क्रांतिकारी स्वामी कुमारानंद लाते हैं। जबरदस्त बात यह है कि दोनों धर्माचार्य हैं। एक मौलाना हैं व दूसरे स्वामी परन्तु एक-दूसरे धर्म के प्रति नफरत नहीं बल्कि भारत के लिए देश प्रेम की भावना है। इस प्रस्ताव के समर्थन में बंटने वाले पर्चे को दुनिया के कम्युनिस्ट आंदोलन में सबसे बड़े नामों में से एक एम एन रॉय व अबनी मुखर्जी बनाते हैं। क्या खूबसूरत मंज़र है। देश की आज़ादी के लिए धर्म,कौम व राजनीतिक द्वेष की भावना के लिए कोई स्थान ही नहीं है और केवल इंसानियत व भारतीयता सबसे ऊपर है।
जो आज देश में धर्मांधता व साम्प्रदायिकता का ज़हर घोल रहे हैं व जो आज़ादी के आंदोलन से न केवल गायब थे बल्कि अंग्रेजों की चाटुकारिता कर रहे थे,उनसे पेंशन ले कर उनकी रोटियों पर पल रहे थे व क्रांतिकारियों के खिलाफ गवाहियां देकर अंग्रेजों के प्रति अपनी भक्ति दिखा रहे थेे,वे आज सबसे बड़े देशभक्त होने का नाटक कर रहे हैं। वे धर्मांधता व साम्प्रदायिक ज़हर घोल कर देश के बंधुत्व व एकता को खत्म कर रहे हैं। किसानों,मजदूरों,कर्मचारियों व मेहनतकश जनता के आंदोलनों पर फब्तियां कस रहे हैं। उन्हें आतंकवादी तक कह रहे हैं।
जिस तिरंगे से उन्हें हाल ही तक नफरत थी व जो अपने कार्यालयों में इसे फहराने से परहेज़ करते थे,वे आज उसे बड़े जोरों-शोरों से फहरा रहे हैं,चाहे यह केवल दिखावे के लिए ही हो रहा हो अथवा अंधराष्ट्रवाद को बढ़ाने के लिए हो रहा हो। देश के इन गद्दारों द्वारा तिरंगे को फहराना ही आज़ादी के आंदोलन की सबसे बड़ी जीत है। यह आज़ादी के आंदोलन की समृद्ध परंपरा व बहुलतावाद की जीत है। यह हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई एकता व भारतीयता की जीत है। हमें यह प्रण लेना है कि आजादी के आंदोलन की क्रांतिकारी व प्रगतिशील परम्परा कायम रहे। हमें देश की एकता व अखंडता में फूट डालने वाली ताकतों को करारा जबाव देना है व आज़ादी के मूल्यों की रक्षा करनी है।
विजेंद्र मेहरा
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