तड़पते भारत की आपदा ही शाईनिंग इंडिया का अवसर है- विजेंद्र मेहरा



Vijendra Mehra
तड़पते भारत की आपदा ही शाइनिंग इंडिया का अवसर है
June 01, 2021
तड़पते भारत की आपदा ही शाइनिंग इंडिया का अवसर है

विजेंद्र मेहरा

          ऑक्सफेम संस्था ने भारत को लेकर एक रिपोर्ट जारी की है। ऑक्सफेम के अनुसार कोरोना महामारी के लॉकडाउन के दौर में भारत के पूंजीपतियों व अमीरों की धन दौलत सम्पदा लगभग 35 प्रतिशत तक बढ़ गयी है। यह तब हुआ है जब भारत के 24 प्रतिशत लोगों की मासिक आय केवल तीन हज़ार रुपये मासिक से भी कम है। देश के सबसे अमीर आदमी मुकेश अम्बानी ने इस दौर में प्रति घन्टा 90 करोड़ रुपये की आय अर्जित की है। कोरोना काल में अर्जित इस आय से अनौपचारिक क्षेत्र में कार्यरत देश के 40 करोड़ मजदूरों को पांच महीने तक गरीबी की मार से बचाया जा सकता है। ऑक्सफेम की "इनइक्वेलिटी वायरस रिपोर्ट" के अनुसार देश के सबसे अमीर सौ खरबपतियों की आय मार्च 2020 से कोरोना महामारी के दौरान इतनी ज्यादा बढ़ी है कि देश के सबसे गरीब 13 करोड़ 80 लाख व्यक्तियों में इस बढ़ी हुई आय को बांट दिया जाए तो उन सबको 94 हज़ार रूपए की आर्थिक मदद दी जा सकती है। याद रखें कि कोरोना महामारी की पहली लहर में मार्च से मई 2020 के बीच लगभग 12 करोड़ 60 लाख मजदूरों की नौकरियां चली गयी थीं जिसमें कई महीनों बाद दोबारा से कड़ी मशक्कत के बाद मजदूर दोबारा से रोज़गार हासिल करने में सफल हो ही रहे थे कि तभी दोबारा से कोरोना की दूसरी लहर ने मजदूरों का रोज़गार छीनना शुरू कर दिया। कोरोना की दूसरी लहर में भी अप्रैल 2021 तक लगभग एक करोड़ मजदूरों को नौकरी से वंचित होना पड़ा है। इस तरह यह आंकड़ा उतना ही बैठता है जितना कि ऑक्सफेम अपनी रिपोर्ट में ज़िक्र करता है कि देश के सौ खरबपतियों द्वारा कोरोना लोकडाउन में कमाई गयी धन दौलत सम्पदा से 13 करोड़ 80 लाख सबसे गरीबों को लगभग एक लाख रुपये की आर्थिक मदद उपलब्ध करवाई जा सकती है। इस रिपोर्ट ने इस बात का भी ज़िक्र किया है कि लॉकडाउन के दौरान ग्यारह सबसे अमीर खरबपतियों द्वारा जो सम्पत्ति अर्जित की गई है,उस से अगले दस साल तक मनरेगा व स्वास्थ्य सुविधाओं का खर्चा चलाया जा सकता है व करोड़ों लोगों को रोज़गार दिया जा सकता है। यह तस्वीर काफी कुछ कहती है। इस से साफ हो जाता है कि कोरोना महामारी की लॉक डाउन की आपदा भी देश के अमीरों के लिए बेहतरीन अवसर साबित हुई है। यही तो शाइनिंग इंडिया है जिसका उदाहरण हर कदम पर सत्ताधीशों द्वारा दिया जाता है। वे कहते हैं कि कौन कहता है कि हमारा देश कोरोना काल में पीछे गया है। अखबारों के हैडलाइन कहते हैं कि कोरोना काल में हमारे देश के सबसे अमीर आदमी मुकेश अम्बानी एशिया के सबसे अमीर आदमी हो गए। वह दुनिया के टॉप टेन में भी शुमार हो गए। हमारा देश प्रगति कर रहा है। टीवी चैनलों की डिबेट के अनुसार भी कोरोना काल में हमारे देश में सब कुछ अच्छा रहा। यही परसेप्शन है व यही अवधारणा है जिसके जरिये देश के विकास का आकलन केवल चंद अमीरों की बढ़ती आय से किया जाता है व यह बतलाने की कोशिश की जाती है कि हमारा देश आगे बढ़ रहा है। अमीरों के इस विकास के बैकड्रॉप में स्थित गरीबी की भयानक तस्वीर कुछ उस तरह से छिपा दी जाती है जैसे डोनाल्ड ट्रम्प के भारत दौरे के दौरान अहमदाबाद में रंग-बिरंगी सतरंगी दीवार बनाकर झुग्गी-झोंपड़ियों को छिपा दिया गया था व यह बतलाने की कोशिश की गई थी कि हमारे देश में सब कुछ ठीक है। यही अच्छे दिनों का नारा है। यही फील गुड है। 

            मगर हकीकत इसके इतर है जिसे समझना बेहद आवश्यक है। यह देश सिर्फ सौ खरबपतियों का नहीं है। देश की कुल जनसंख्या तो एक अरब चालीस करोड़ के करीब पहुंचती आयी है। इसकी बहुतायत मजदूर,किसान,खेतिहर मजदूर,कर्मचारी,स्व रोज़गार में लगे लोग व मेहनतकश अवाम है। क्या वास्तव में ही इन करोड़ों लोगों के अच्छे दिन आ गए हैं? क्या कोरोना वास्तव में ही सबके लिए अवसर सिद्ध हुआ है? क्या सच्चाई में ही गरीबों को दो वक्त की रोटी मुहैय्या हुई है? क्या आम जनता की स्थिति पहले से बेहतर हुई है? क्या देश के करोड़ो लोगों के लिए कोरोना आपदा है या फिर अवसर? क्या यह सोची समझी रणनीति है या फिर कुछ और कि जहां एक ओर करोड़ों लोग भारी संकट में हैं वहीं चंद सैंकड़ों अमीर खरबपति कोरोना में भी चांदी कूट रहे हैं? क्या यह सिर्फ एक संयोग मात्र है या फिर पूरे सिस्टम का तंत्र ही ऐसा है? या फिर अमीरों को छूट व गरीबों की लूट ही इसका मूल मंत्र है। कोई भी समझदार व्यक्ति बड़ी आसानी से इसको समझ सकता है सवाल सिर्फ इतना है कि उसे यह समझने के लिए दिमाग के दरवाजे खोलने पड़ेंगे और वाकई में खोलने पड़ेंगे व इस सब पर सत्ताधीशों व हुकूमत से प्रश्न करने पड़ेंगे।

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन(आईएलओ) ने कोरोना काल के जो आंकड़े जारी किये हैं, उसके अनुसार भारत वर्ष में रोज़गार की स्थिति बेहद खराब हुई है। दैनिक भोगियों,निर्माण,पर्यटन,मेन्युफेक्चरिंग,अकोमोडेशन,होटल,फूड सर्विसेज,प्रवासी मजदूरों,खेतिहर मजदूरों,दुकानदारों व अनौपचारिक क्षेत्र के मजदूरों आदि की स्थिति सच में सिर चकरा देने वाली है। दुनिया की कुल श्रम शक्ति लगभग तीन अरब चालीस करोड़ है जिसमें से 15 प्रतिशत श्रम शक्ति भारत वर्ष में है। भारत में कुल मजदूरों की संख्या लगभग पचास करोड़ है। आईएलओ के अनुसार कोरोना की पहली लहर में दुनिया में अप्रैल-मई 2020 के दो महीनों में ही लगभग साढ़े उन्नीस करोड़ लोगों का रोज़गार खत्म हुआ था जिसका एक बड़ा हिस्सा भारत में था। देश की दो महत्वपूर्ण संस्थाओं सेंटर फॉर मोनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी(सीएमआईई) व अज़ीम प्रेमजी विश्विद्यालय द्वारा कोरोना काल में जो रोज़गार से सम्बंधित आंकड़े जारी किए गए हैं,वे एक भयानक तस्वीर प्रस्तुत करते हैं। हालांकि दोनों ही संस्थाएं निजी क्षेत्र में कार्य करने वाली संस्थाएं हैं परन्तु रोज़गार के सम्बंध में उनका अध्ययन देश में लगभग सर्वमान्य है। वैसे भी इनके आंकड़ों के सिवाए कोई ज़्यादा चारा नहीं है। देश के पास और ज़्यादा विश्वसनीय आंकड़े नहीं हैं क्योंकि केंद्र सरकार वैसे भी सरकारी संस्थाओं लेबर ब्यूरो व नेशनल सैम्पल सर्वे आर्गेनाईजेशन(एनएसएसओ) के आंकड़ों पर पिछले काफी समय से रोक लगाकर बैठी हुई है ताकि केंद्र सरकार की रोज़गार के मामले में पोल न खुल जाए व यह जनता में बेनकाब न हो जाए। वैसे भी यह सरकार अपनी नाकामियों को छिपाने के लिए आंकड़ों को छिपाने व इन आंकड़ों को जारी करने वाली संस्थाओं की रिपोर्टों को जारी न करने की रणनीति पर पिछले चार वर्ष से चली हुई है। सीएमआईई के आंकड़ों के अनुसार मार्च से मई 2020 की कोरोना की पहली लहर में भारत में लगभग 12 करोड़ 60 लाख लोग रोज़गार से वंचित हुए थे। यह लगभग कुल श्रम शक्ति का 25 प्रतिशत था। इनमें से 9 करोड़ मजदूर दैनिक भोगी मजदूर थे। हर रोज़ कमाने व खाने वाले मजदूर। दिहाड़ी लगी तो आय हुई और न लगी तो रोटी से भी वंचित। इनमें से ज्यादातर अनौपचारिक क्षेत्र में कार्य करने वाले निर्माण मजदूर,रेहड़ी फड़ी तयबजारी,फोटोग्राफर,कुली,गाइड,निजी ट्रांसपोर्टर,एडवेंचर स्पोर्ट्स,घोड़ागाड़ी चलाने वाले,ऑटोरिक्शा व टैक्सी संचालक आदि शामिल थे। मई 2021 में भी लगभग एक करोड़ लोग रोज़गार से वंचित हुए हैं। भारत में वेतनभोगी कर्मियों की संख्या वर्ष 2019-20 के सत्र में 8 करोड़ 59 लाख थी जोकि मार्च 2021 तक घटकर 7 करोड़ 62 लाख रह गयी। इस तरह वेतनभोगियों के कुल 97 लाख रोज़गार कोरोना काल में घट गए। भारत में वर्ष 2019-20 में कुल रोज़गार की संख्या 40 करोड़ 35 लाख थी जोकि मार्च 2021 में घटकर 39 करोड़ 80 लाख रह गयी। इस तरह लगभग एक साल के अन्तराल में रोज़गार बढ़ने के बजाए लगभग 55 लाख कम हो गए। रोज़गार की इस छंटनी से इसमें से लगभग 8 प्रतिशत मजदूरों ने दोबारा से खेतीबाड़ी की ओर रुख कर लिया जबकि सब जानते हैं कि कृषि स्वयं गम्भीर संकट में है। कृषि संकट के कारण इन 8 प्रतिशत लोगों के पास भूखे मरने के सिवाए और कोई चारा भी नहीं है।

                इन दो संस्थाओं द्वारा जनता का सर्वे करने से पता चला है कि उनमें से केवल 3 प्रतिशत की आय पिछले वर्ष के मुकाबले बढ़ी है। लगभग 55 प्रतिशत की आय पिछले वर्ष के मुकाबले काफी ज्यादा गिरी है। बाकी बचे 42 प्रतिशत लोग कहते हैं कि उनकी आय पहले की तरह ही है। न यह बढ़ी है और न यह गिरी है जिसका मतलब है कि महंगाई के कई गुणा बढ़ने से उनकी वास्तविक आय गिरी है क्योंकि उनके वेतन का ज़्यादा हिस्सा अब महंगाई के कारण ज़्यादा खर्च हो रहा है। इस तरह लगभग 97 प्रतिशत लोग पिछले वर्ष की तुलना में गरीब हुए हैं।

                अब इन आंकड़ों से साफ पता चलता है कि नवउदारवादी नयी आर्थिक नीतियों के इस दौर में अमीरी व गरीबी की खाई गहरी हो रही है। अमीर और ज़्यादा अमीर व गरीब और ज़्यादा गरीब हो रहे हैं। एक तरफ अमीरों की धन दौलत सम्पदा बढ़ रही है और दूसरी ओर गरीबी,लाचारी,बेकारी व भुखमरी बढ़ रही है। यह सब पूंजीवाद के अंतर्निहित मुनाफाखोरी व शोषण के नियम के तहत हो रहा है। अमीरों को छूट व गरीबों की लूट ही नवउदारवाद का मूल मंत्र है। कोरोना काल इसमें कोई अपवाद नहीं है। गरीबों व आम जनता के लिए कोरोना काल की आपदा अमीरों के लिए अवसर सिद्ध हुई है। यह अचानक नहीं हुआ है बल्कि अमीरों की अमीरी को बढ़ाने व गरीबों को गरीबी की गर्त में धकेलने के पीछे केंद्र सरकार का पूंजीवादी व्यवस्था को पोषित करने का एक स्पष्ट एजेंडा है जिसे वह बखूबी बदस्तूर जारी रखे हुए है व भविष्य में इसे और तेज़ करेगी। अब तय जनता को करना है कि इसे बदलने के लिए  इसके खिलाफ लड़ना है या फिर चुपचाप सहते रहना है। जनता को मुखर होकर जनविरोधी नीतियों का पर्दाफाश हर हाल में करना ही होगा व संघर्ष विकसित करके इन नीतियों की धार गरीबों की ओर मोड़नी होगी क्योंकि इसके सिवा और कोई चारा भी नहीं है।
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