मीटर रीडिंग के आधार पर बिजली पानी और कूड़े के मासिक बिल दे नगर निगम-सीपीआईएम

[12/15, 3:05 PM] Sanjay Chauhan: प्रेस विज्ञप्ति
भारत की कम्युनिस्ट पार्टी(मार्क्सवादी)  प्रदेश में निजी स्कूलों के द्वारा मनमानी फीस वसूली को लेकर सरकार के ढुलमुल रवैये व निजी स्कूलों से मिलीभगत की कढ़ी निंदा करती है तथा मांग करती है कि सरकार इस मुद्दे पर तुरन्त संजीदगी से हस्तक्षेप कर निजी स्कूलों को आदेश जारी करे कि स्कूल केवल ट्यूशन फीस ही अभिभावकों से ले और उसके अतिरिक्त कोई भी फण्ड व फीस न तो मान्य है और न ही ली जाए। यदि कोई स्कूल इसकी मांग करता है तो उसके विरुद्ध कढ़ी कार्यवाही की जाए। पार्टी निजी स्कूलों की मनमानी के विरुद्ध अभिभावकों के द्वारा चलाए जा रहे आंदोलन का समर्थन करती है और सभी अभिभावकों से भी आग्रह करती है कि इस आंदोलन में भाग ले और निजी स्कूलों की मनमानी पर रोक लगाने के लिए सरकार पर दबाव बनाए।
                   कोविड महामारी के कारण आज अधिकांश लोगों का रोजगार व कारोबार प्रभावित हुआ है और जनता आर्थिक संकट से जूझ रही हैं। अभिभावक सरकार से बार बार मांग कर रहें हैं कि सरकार निजी स्कूलों को आदेश जारी करे कि स्कूल केवल ट्यूशन फीस ही ले। परन्तु सरकार निजी स्कूलों के दबाव में आकर स्पष्ट आदेश जारी नहीं कर रही है। चाहे वह मार्च, 2020 में सरकार के कहने पर शिक्षा निदेशालय के द्वारा जारी आदेश हो या उसके बाद के आदेश हो उसमें स्पष्ट रूप से सरकार निजी स्कूलों के साथ मिलीभगत कर सारा निर्णय उन पर ही छोड़ दिया है और अभिभावकों की मांग पर बिल्कुल भी गौर नहीं कर रही है। उच्च न्यायालय के ट्यूशन फीस को लेकर स्पष्ट आदेश के बावजूद 8 दिसम्बर, 2020 की सरकार के कहने पर शिक्षा निदेशक व निजी स्कूलों के प्रिंसिपल के साथ हुई बैठक के बाद जो आदेश सरकार के शिक्षा निदेशालय ने जारी किया है उससे तो स्पष्ट है कि सरकार पूर्णतः निजी स्कूलों के दबाव में काम कर रही है क्योंकि इस आदेश में फीस की वसूली का निर्णय स्कूलों पर ही छोड़ दिया है जबकि अधिकांश स्कूलों में तो पी टी ए का गठन ही नहीं किया गया है तो वह फीस के बारे कैसे निर्णय करेंगे। ऐसी स्थिति में सरकार का रवैया स्पष्ट है कि वह किसी भी प्रकार की राहत प्रदान नहीं करना चाहती है। सरकार की निजी स्कूलों से मिलीभगत व इस ढुलमुल रवैये ने अभिभावकों को सड़क पर लाकर खड़ा कर दिया है और आज प्रदेश में निजी स्कूलों की मनमानी फीस वसूली के विरुद्ध अभिभावकों को स्कूलों के बाहर प्रदर्शन करने के लिए मज़बूर कर दिया हैं।
                     यदि निजी स्कूलों द्वारा ली गई केवल ट्यूशन फीस के रूप में एकत्र राशि का ही आंकलन किया जाए तो उससे अध्यापकों व स्टाफ के वेतन व भत्ते तथा स्कूल न चलने के बावजूद जो अन्य खर्च है को वहन करने के लिए यह राशि पर्याप्त है। कई स्कूलों ने तो अभी तक ट्यूशन फीस के ही करोड़ों रुपये एकत्र कर चुके हैं। यदि कुछ स्कूल वहन नहीं कर पाते हैं तो वह अपने 'कार्पस फण्ड' में जो राशि है उससे इस ख़र्च को कर सकते हैं। और यदि फिर भी कोई स्कूल यह वहन नहीं कर पाते तो सरकार को इन स्कूलों को अनुदान राशि प्रदान करनी चाहिए। ताकि अभिभावकों पर इस संकट काल मे अतिरिक्त आर्थिक बोझ न पड़े।
                 सीपीएम प्रदेश के सभी अभिभावकों से आग्रह करती है कि निजी स्कूलों की इस मनमानी फीस वसूली व सरकार के इस छात्र अभिभावक रवैये के विरुद्ध सभी अभिभावक संगठित होकर इस निर्णय को बदलने के लिए अपनी आवाज़ बुलंद करे। पार्टी अभिभावकों की इन जायज़ माँगो के इस आंदोलन में पूर्ण रूप से सहयोग करेगी।
संजय चौहान
राज्य सचिवमण्डल सदस्य
भारत की कम्युनिस्ट पार्टी(मार्क्सवादी)
हिमाचल प्रदेश।
[12/17, 3:15 PM] Sanjay Chauhan: प्रेस विज्ञप्ति
भारत की कम्युनिस्ट पार्टी(मार्क्सवादी) सरकार व नगर निगम शिमला के द्वारा शिमला शहर में कई महीनों के भारी भरकम पानी व कूड़े के बिल देने की कड़ी निंदा करती है तथा सरकार व नगर निगम शिमला से मांग करती है कि इन अनुचित भारी भरकम बिलो को तुरंत वापिस ले तथा मीटर रीडिंग के आधार पर मासिक पानी व कूड़े के बिल जनता को दे। शहर में जो पानी व कूड़े के बिल अभी कंपनी व नगर निगम ने हजारों व लाखों रुपए के बिल दिये हैं उस पर नाजायज़ पेनेल्टी व सरचार्ज लगाए गये हैं, वह बिलकुल भी सही नहीं है और इसने सरकार व नगर निगम शिमला की लचर कार्यप्रणाली की पोल खोल दी है। आज शहर में कोई भी वर्ग ऐसे नहीं है जो सरकार व नगर निगम की इन जनविरोधी नीतियों व लचर व्यवस्था से परेशान नहीं है। यह अत्यंत चिंतनीय इसलिए भी है जबकि शहर की जनता द्वारा चुने विधायक ही सरकार में शहरी विकास मंत्री हैं और उनके विभाग के तहत ही यह सब किया जा रहा है। कोविड महामारी के चलते जहां सरकार को राहत प्रदान करनी चाहिए थी वहां सरकार व नगर निगम राहत देने के बजाए जनता पर इस प्रकार के भारी भरकम अनुचित पानी व कूड़े के बिल जारी कर उन पर आर्थिक बोझ डालने का कार्य कर रही है।
             जबसे शिमला नगर निगम व प्रदेश में बीजेपी सत्तासीन हुई है तबसे जनता पर पानी, बिजली, प्रॉपर्टी टैक्स, कूड़ा उठाने की फीस आदि की दरों में निरन्तर बढ़ोतरी कर जनता पर आर्थिक बोझ डालने का कार्य किया जा रहा है। वर्ष 2016 में पूर्व नगर निगम ने लम्बे संघर्ष के बाद शिमला की पेयजल व्यवस्था पूर्णरूप से अपने अधीन ली थी तथा नगर निगम के प्रबंधन में ग्रेटर शिमला वाटर सप्लाई एंड सिवरेज सर्कल(GSWSSC) का गठन कर पेयजल सुधारने के लिए करीब 80 करोड़ रुपये का प्रावधान किया था और जून, 2017 से मासिक पानी के बिल जारी करने की पूर्ण व्यवस्था कर दी थी। परन्तु जून, 2017 में नगर निगम शिमला में बीजेपी सत्तासीन होने के बाद सरकार व विश्व बैंक के दबाव में आकर नगर निगम की इस पूरी व्यवस्था को तहसनहस कर दिया और एक कंपनी शिमला जल प्रबंधन निगम लिमिटेड(SJPNL) का गठन कर पेयजल व्यवस्था के निजीकरण का कार्य आरम्भ कर दिया। जिसके परिणामस्वरूप न तो 3 वर्ष से अधिक समय बीतने के बाद जनता को मासिक पानी के बिल मिले और उसके बदले आज अनुचित भारी भरकम पानी के बिल दिये जा रहे हैं और अब लोकतांत्रिक रूप से जनता के द्वारा चुनी हुई नगर निगम का भी इस कंपनी के ऊपर कोई नियंत्रण नहीं है। जिसके कारण आज जनता की कोई सुनवाई नहीं हो रही है और उन्हें सरकार व नगर निगम के इस जनविरोधी निर्णय के कारण भारी परेशानी उठानी पड़ रही है। 
         सीपीएम सरकार से मांग करती है कि संविधान की मर्यादाओं को ध्यान में रखते हुए नगर निगम एक वैधानिक संस्था होने के कारण उसको अपने दायित्वों का निर्वहन स्वतंत्र रूप से करने दिया जाए और इस कंपनी(SJPNL) को समाप्त कर पूर्व की भांति पूरी पेयजल की व्यवस्था नगर निगम के अधीन की जाए। ताकि शहर के द्वारा चुनी हुई सरकार अपने दायित्व का निर्वहन कर सके और जनता के प्रति अपने कर्तव्य का पालन करे। यदि सरकार इन अनुचित पानी व कूड़े के बिलों को वापिस नहीं लेती और इस कंपनी को समाप्त नहीं करती तो पार्टी सरकार व नगर निगम की इन जनविरोधी नीतियों व लचर कार्यप्रणाली के विरुद्ध जनता को लामबंद कर आंदोलन तब तक चलाएगी जबतक कि यह मांगे पूरी नहीं हो जाती और जनता को राहत नहीं मिल जाती।
संजय चौहान
जिला सचिव
भारत की कम्युनिस्ट पार्टी(मार्क्सवादी)

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