हिमाचल की खाद्यान्न सुरक्षा के लिए खतरा बन सकते है तीनों कृषि संबंधी कानून

" हिमाचल की खाद्यान्न सुरक्षा के लिए खतरा बन सकते हैं खेती संबंधी तीनों कानून?
दूसरे राज्यों पर टिकी है हिमाचल की जन वितरण प्रणाली
प्राइवेट खिलाड़ियों से कितना खरीद पाएगी कर्ज में डूबी हिमाचल सरकार"
☭ पिछले दो महीनों से तीन कृषि संबंधी कानूनों के खिलाफ पूरे भारत के किसान और खासतौर पर उतर भारत के किसान लगातार विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। पंजाब में दो महीनों से लगातार किसान राज्य स्तर पर संघर्ष कर रहे थे, यह संघर्ष पूरी तरह से शांतिपूर्ण जारी था लेकिन सरकार ने किसानों को बात नहीं मानी तो हार कर किसानों को दिल्ली की तरफ कूच करना पड़ा और अब लगभग आधे महीने से किसान दिल्ली पर घेरा डाले हुए हैं। हालांकि हरियाणा सरकार ने दिल्ली की तरफ जाने वाले तमाम रास्तों को खोद कर, मिट्टी के ट्रक लगाकर और तीन-तीन स्तर पर बैरिकेडिंग कर रोक दिया था। लेकिन किसानों ने तमाम बाधाओं को ताश के पत्तों की तरह बिखेर दिया।
आम लोगों के लिए सवाल यह उठता है कि यह किसान इन तीन कानूनों को काले कानून क्यों कह रहे हैं, क्यों इन कानूनों को वापिस लेने की मांग कर रहे हैं और हिमाचल प्रदेश पर इन तीन कृषि संबंधी कानूनों को क्या असर पड़ेगा। आइये हम इन सवालों और तीनों कानूनों को समझने की कोशिश करते हैं।
तीनों कानून बनाने की प्रक्रिया ही संदेह पैदा करती है
कोरोना महामारी के दौरान बड़े-बड़े विदेशी पूंजीपतियों व देशों के सामने अभूतपूर्व संकट पैदा हो गया। इस संकट को गरीब देशों पर लाद कर, उनके संसाधनों की लूट कर ही वह अपने इस आर्थिक संकट को दूर कर सकते हैं। अमेरिका ने अपने संकट को दूर करने और अकूत मूनाफा कमाने के लिए भारत से साथ जुलाई 2020 में एग्रोबिजनेस समझौता किया। इस समझौते के तहत भारत सरकार को अपने कृषि बाजार को अमेरिका के लिए खोलना है। इसी कड़ी में अमेरिका यहां के दलाल बड़े-बड़े पूंजीपतियों, कार्पोरेट्स के साथ मिल कर इस तरह के कानून बनवाने के लिए दबाव डाला है। इतना ही नहीं इन कानूनों व कृषि पर कब्जा करने का कार्य पहले हरित क्रांति से उसके बाद विश्व व्यापार समझौते (WTO)के जरिए लगातार जारी है। यह कानून कृषि पर विदेशी कंपनियों के कब्जे करने की प्रक्रिया को और तेज कर रहे हैं।
जिस समय पूरा भारत कोरोना की तबाही से जूझ रहा था, करोड़ों-करोड़ मजदूर बेरोजगार हो रहे थे, भूखे-प्यासे अपने घरों जा रहे थे उस समय आपतकालिन प्रावधानों को इस्तेमाल करते हुए भारत के राष्ट्रपति ने तीन अध्यादेश लागू किए। अध्यादेश बेहद आपतकालिन परिस्थितियों में कानून के रूप में लागू किए जाते हैं जब संसद का सत्र बुलाना संभव न हो और उन कानूनों की अति आवश्यकता हो। लेकिन इन कानूनों को अध्यादेश के जरिए लागू करना ही इन पर संदेह पैदा करता है। इसके बाद सितंबर में इन कानूनों को संसद के सामने रखा गया और वहां बिना चर्चा किए ध्वनि मत से पारित करवा दिया गया। 27 अक्तूबर को पूरे देश में यह कानून लागू हो गए। बिना किसानों से चर्चा किए, बिना सांसदों के बहस किए और बिना किसानों की यूनियनों से बात किए तीनों कानून लागू किए गए। किसानों का कहना है कि यह लोकतंत्र के खिलाफ है। इसके अलावा देश के जाने-माने वकील और किसान नेता यह भी बोल रहे हैं कि संविधान के मुताबिक कृषि संबंधी कानून बनाना राज्यों के अधिकार क्षेत्र में आता है तो सरकार ने पहले अध्यादेश लाकर और फिर बिना संसद में चर्चा के ये बिल लागू क्यों किए।
क्या है तीन कानून
सरकार द्वारा निम्नलिखित तीन कानून पास किए गए हैं। इसमें पहले कानून है - 1. आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून 2020 [Essential Commodities (Amendment) Act 2020 ] 2. किसान उत्पाद व्यापार एवं वाणिज्य (प्रोत्साहन एवं सहायता) कानून,  [Farmers Produce Trade and Commerce (Promotion and Facilitation) Bill 2020]। 3. [Farmers Produce Trade and Commerce (Promotion and Facilitation) Bill 2020]। 2. मूल्य आश्वासन पर किसान (बंदोबस्ती और सुरक्षा) समझौता एवं कृषि सेवा कानून 2020।
देश के उद्योगपतियों के सबसे बड़े संगठन के एक वेबिनार करवाया जिसका विषय था – कृषि की पुनर खोज व नीतिगत सुधारों में मौके – इस में बोलते हुए नंदिता गुप्ता (संयुक्त सचिव (भंडारण एवं ) खाद्यान्न एवं जन वितरण विभाग) ने इन कानूनों के बारे में कुछ इस तरह से बताया –
आवश्यक वस्तु अधिनियम (संशोधन) 2020 से भंडारण पर लगे नियंत्रण हट जाएंगे और यह उत्पादन, भंडारण और उसके परिवहन, कृषि उत्पादों के वितरण और आपूर्ति की आजादी प्रदान करेगा। इस से निजी और विदेशी निवेश की संभावनाएं दिखाई देती हैं। खासतौर से सप्लाई चेन के गोदाम आदि में.
भारत में आवश्यक वस्तु कानून 1955 में बना था। इस कानून का उद्देश्य आवश्यक वस्तुओं की जमाखोरी को रोकने के लिए, उनके उत्पादन, आपूर्ति और कीमतों को नियंत्रित रखना था। आवश्यक वस्तुओं में दवाई, खाद, जूट और जूट के कपड़े, अनाज, फल और सब्जियों के बीज, जानवरों का चारा, फेसमास्क और हेंडसेनेटाईजर आते थे। लेकिन सरकार ने नए कानून के तहत यानी आवश्यक वस्तु (संसोधन) कानून 2020 के अंतर्गत अनाज, दाल, आलू, प्याज, तिलहन और तेल की सप्लाई पर अति-असाधारण परिस्थितियों पर ही सरकार नियंत्रण लगाएगी। अति असाधारण परिस्थितियों को मतलब है युद्ध, अकाल, कीमतों में अप्रत्याशित उच्छाल या फिर गंभीर प्राकृतिक आपदा।
दूसरा कानून है -  कृषि उत्पाद व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सहायता) कानून,  [Farmers Produce Trade and Commerce (Promotion and Facilitation) Bill 2020]।  हर राज्य में राज्य सरकार द्वारा कानून बनाकर एपीएमसी यानी एग्रिकल्चरप्रोडूस एवं लाईवस्टाक मार्केट कमेटी (APMC) बनाई जाती है। इनको आम भाषा में अनाज मंडी, सब्जी मंडी अनाज एवं सब्जी मंडी आदि भी कहा जाता है। इन मंडियों में कमिशन एजेंट सरकार द्वारा तय न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर किसानों से अनाज खरीदते हैं। इस अनाज का एक बड़ा हिस्सा केंद्र व राज्यों की सरकारी एजेंसियां जैसे FCI, हैफेड, हिमफेड आदि खरीदती हैं। यह वही अनाज है जो जन वितरण प्रणाली यानी राशन की दुकानों पर सस्ते में उपलब्ध होता है।
नए कानून के तहत निजी कंपनियों, व्यापारियों, पूंजीपतियों को यह अधिकार दे दिये गए हैं कि वह मात्र पेन कार्ड के आधार पर देश के किसी भी हिस्से में जाकर किसानों से सीधा अनाज खरीद सकता है और कहीं भी ले जाकर बेच सकता है।
तीसरा कानून [Farmers Produce Trade and Commerce (Promotion and Facilitation) Bill 2020]। 2. मूल्य आश्वासन पर किसान (बंदोबस्ती और सुरक्षा) समझौता एवं कृषि सेवा कानून 2020। इस कानून के कोई भी कंपनी, पूंजीपति व जमींदार किसानों के साथ, फसल बोने के समय निश्चित मूल्य पर फसल बेचने के लिए समझौता कर सकता है। अगर इनके बीच कोई विवाद हो तो किसान केवल एसडीएम तक ही अपनी शिकायत कर सकता है, उसको कोर्ट में जाने का अधिकार नहीं होगा। यह  प्रावधान उन कार्पोरेट घरानों के लिए किया गया है जो कांट्रेक्टफार्मिंग  के जरिए सैंकड़ों एकड़ पर अपनी कंपनियों के लिए जरूरी उत्पादन करना चाहते हैं।
इस से क्या होगा –बड़ी-बड़ी कंपनियां किसानों के साथ समझौता कर बड़े-बड़े फार्म हाउस बनाएंगी या फिर उनके साथ समझौता कर उनको अपनी फसल बोने के लिए बीज देंगी। जो बीज देगा वहीं कीमत तय करेगा। किसानों को उनकी फसल बोने के लिए साल भर मेहनत करनी होगी, किसान को मिलेगा तय रेट। इसके अनुभव बताते हैं कि एक-दो साल तक को कंपनियां किसानों को सही रेट देती हैं जब उत्पादन ज्यादा हो जाता है और बाजार में कीमत कम हो जाती हैं तो कंपनियां किसानों की फसलों में नुक्स निकाल कर उसके तय रेट नहीं देती, किसान को मजबूरी में अपनी फसल ओने-पोने दामों पर देनी पड़ती है। एक तरह से किसान नौकर की तरह कंपनियों के लिए अपनी ही जमीन पर काम करता है।
☭ अब बात आती है हिमाचल पर इनका क्या प्रभाव पड़ेगा
यह बात सभी को मालूम है कि हिमाचल प्रदेश खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर नहीं है। हिमाचल प्रदेश को दूसरे राज्यों से लाखों टन अनाज का आयात करना पड़ता है तब जाकर प्रदेश की जनता को भर पेट अनाज मिल पाता है। राज्य सरकार के फुड, सिविल सप्लाई एवं उपभोक्ता मामला विभाग के अनुसार प्रदेश में कुल मिलाकर 18 लाख 86 हजार 790 राशनकार्ड धारक हैं जिनमें से एपीएल की संख्या 12 लाख 9 हजार 83, बीपीएल की संख्या 2 लाख 79 हजार 319, अंतोदय योजना के तहत 1 लाख 78 हजार 531 और पीएच के तहत 2 लाख 19 हजार 857 राशन कार्ड हैं। सर्वाधिक राशन कार्ड कांगड़ा और मंडी जिले में है। 31 मार्च 2020 तक 73 लाख 2 हजार 625 लोगों के लिए प्रति परिवार 15 किलो राशन हर महीने राज्य सरकार द्वारा आवंटित किया जाता है। हर महीने राज्य को 1 लाख 9 हजार 539 मिट्रिक टन व हर साल 13 लाख 15 हजार मिट्रिक टन अनाज की जरूरत पड़ती है। यह सारा अनाज राज्य सरकार केंद्र सरकार की एजेंसी एफसीआई व अन्य सरकारी एजेंसियों के माध्यम से खरीदती है।
यह कानून हिमाचल प्रदेश की खाद्य सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा होगा। जब केंद्र सरकार आने वाले समय में एफसीआई व अन्य एजेंसियों के जरिए अनाज नहीं खरीदेगी तो राज्य सरकार का फूड व सिविल सप्लाई विभाग कहां से अनाज खरीदेगा। उसको अनाज निजी कंपनियों से खरीदना होगा। निजी कंपनियों को जमाखोरी करने की पूरी छूट दी जा चुकी है। इस लिये होगा कि वह कितना भी अनाज जमा रख सकती है और बाजार में कृत्रिम रूप से आपूर्ति कम कर मांग बढ़ा सकती है जिस से अनाज का रेट बहुत अधिक हो जाएगा। राज्य के कर्ज में डूबी हुई सरकार महंगा अनाज नहीं खरीद पाएगी या फिर महंगा अनाज मिलने के कारण राशन की दुकान पर मिलने वाले सस्ते अनाज का रेट लगातार बढ़ाते जाएगी। विश्व व्यापार संगठन आदि के दबाव में लगातार राज्य व केंद्र सरकारेंसब्सिडी खत्म कर रही है तो यह स्वाभाविक ही है कि राशन पर मिलने वाली सब्सिडी भी आने वाले समय में खत्म हो जाएगी।
प्रदेश में सब्जी मंडियों तो बहुत है लेकिन अनाज मंडियों का घोर अभाव है। इस बार मक्का का न्यूनतम समर्थन मूल्य 1850 रुपये प्रति क्विंटल था लेकिन प्रदेश के किसानों को कहीं पर भी एमएसपी नहीं मिला और मक्का 800 रुपये से लेकर मात्र 1400 रुपये प्रति क्विंटल तक ही बिका है। मंडी जिले में कहीं पर भी एपीएमसीएक्ट के तहत अनाज मंडियां या खरीद केंद्र स्थापित कर अनाज नहीं खरीदा गया।
अगर अनाज व सब्जी मंडियां पूरे देश में बंद होती है तो यहां के बागवानी, सब्जी व अन्य नकदी फसलों की बिक्री और मिलने वाले रेट पर भी बहुत अधिक असर पड़ेगा। मानलो आजाद पूर, शिमला, सोलन, परमाणू की मंडियां बंद होती है और बड़ी कंपनियां इसमें कूदती हैं जिनके पास भंडारण की क्षमता भी मौजूद है तो कुछ वर्षों में सेब, टमाटर, आलू के दाम बुरी तरह गिर जाएंगे। कंपनियां दो रुपये किलो खरीदेंगी और फिर उसको मन माने रेट पर बेचेंगी जैसा की हर बार प्याज और आलू के साथ होता भी है।
इस लिए प्रदेश के किसानों, नौजवानों, दुकानदारों, व्यापारियों को इन कानूनों के बारे में विस्तार से जान कर अपनी प्रतिक्रिया देने की जरूरत है।

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