निजी स्कूलों के संचालन के लिए बने कानून छात्र अभिभावक मंच की विधानसभा पर रैली

छात्र अभिभावक मंच ने निजी स्कूलों की मनमानी लूट,भारी फीसों पर रोक लगाने,निजी स्कूलों को संचालित करने के लिए कानून लाने व रेगुलेटरी कमीशन बनाने की मांग को लेकर विधानसभा के बाहर जोरदार प्रदर्शन किया। इस दौरान एडीएम शिमला के माध्यम से हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री को पन्द्रह सूत्रीय ज्ञापन सौंपा गया। विक्ट्री टनल पर एकत्रित हुए अभिभावक एक रैली के रूप में विधानसभा चौक पहुंचे। यहां पर हुई जनसभा को मंच के संयोजक विजेंद्र मेहरा,विवेक कश्यप,सत्यवान पुंडीर,जियानंद,बलबीर पराशर,जगत राम,रंजीव कुठियाला,जय सिंह,राकेश रॉकी,मीनाक्षी,राजेन्द्र शर्मा,शैलेन्द्र मेहता,महेंद्र चौहान,नीलम,सोनिया,कलावती,राम सिंह,सुरेंद्र बिट्टू,मदन,दलीप,राकेश रवि,सुरेश पुंडीर,नवीन कुमार,चन्द्रकान्त,अनिल ठाकुर,अमित,गौरव,रविन्द्र चन्देल,रीना,हेमलता,संदीपा आदि ने सम्बोधित किया।
    
          छात्र अभिभावक मंच संयोजक विजेंद्र मेहरा व सदस्य विवेक कश्यप ने कहा है कि प्रदेश के केवल पांच हज़ार कारखानेदारों को फायदा पहुंचाने के लिए विधानसभा में एक ही दिन में पांच अध्यादेशों को मुहर लगा दी गई जबकि प्रदेश सरकार निजी स्कूलों को संचालित करने व इन से जुड़े सोलह लाख छात्रों व अभिभावकों को प्रभावित करने वाले कानून को जानबूझ कर लटका रही है। इस कानून का प्रस्ताव हिमाचल सरकार के पास एक वर्ष से पड़ा हुआ है। हिमाचल प्रदेश में कार्यरत लगभग तीन हज़ार निजी स्कूलों में  मनमानी लूट हो रही है। इन तीन हज़ार निजी स्कूलों में लगभग छः लाख छात्र शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं जोकि प्रदेश के कुल छात्रों का लगभग पैंतालीस प्रतिशत है। इन स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों के अभिभावकों की संख्या दस लाख से ज़्यादा है। इस तरह छात्रों व अभिभावकों की संख्या लगभग सोलह लाख के करीब है। निजी स्कूलों की मनमानी लूट व भारी फीसों से ये सोलह लाख लोग सीधे तौर पर प्रभावित हैं। यह संख्या हिमाचल प्रदेश की कुल जनसंख्या का लगभग एक- चौथाई हिस्सा है। निजी स्कूलों की खुली मनमानी व बेलगाम लूट पर प्रदेश सरकार खामोश है। अभिभावक पिछले दो वर्षों से प्रदेशभर में इन स्कूलों में प्रवेश प्रक्रिया,पाठ्यक्रम व फीसों को संचालित करने के लिए कानून बनाने की मांग कर रहे हैं। इन स्कूलों के संदर्भ में सन 1997 में बना कानून व वर्ष 2003 के नियम सिर्फ सफेद हाथी हैं व वे किसी भी रूप में इन स्कूलों का किसी भी तरह नियमन नहीं करते हैं। यह हैरानी का विषय है कि प्रदेश में निजी विश्वविद्यालयों व कॉलेजों जैसे उच्च शैक्षणिक संस्थानों को संचालित करने के लिए वर्ष 2010 में रेगुलेटरी कमीशन बन चुका है परन्तु निजी स्कूलों के लिए कोई नियामक आयोग नहीं है। ये स्कूल 25 प्रतिशत गरीब छात्रों को मुफ्त शिक्षा देने हेतु शिक्षा का अधिकार कानून 2009 को भी लागू नहीं करते हैं। ये स्कूल वर्ष 2014 की मानव संसाधन विकास मंत्रालय की गाइडलाइनज़ का भी खुला उल्लंघन कर रहे हैं। ये स्कूल जानबूझ कर पीटीए का भी गठन नहीं करते हैं क्योंकि इस से उन्हें खुली लूट करने का मौका नहीं मिल पाएगा। ये स्कूल निजी स्कूलों की मनमसनी लूट पर रोक लगाने के लिए हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा वर्ष 2016 में दिए गए निर्णय का भी खुला उल्लंघन कर रहे हैं। हिमाचल प्रदेश सरकार भी इन निजी स्कूलों की मनमानी लूट पर खामोश है।

         मंच के संयोजक विजेंद्र मेहरा ने मांग की है कि निजी स्कूलों की मनमानी लूट व भारी फीसों पर रोक लगाई जाए। निजी स्कूलों को संचालित करने के लिए तुरन्त कानून बनाया जाए। निजी स्कूलों को संचालित करने  के लिए रेगुलेटरी कमीशन बनाया जाए। निजी स्कूलों में टयूशन फीस के अलावा अन्य चार्जेज़ पर रोक लगाई जाए। टयूशन फीस कुल फीस का 50 प्रतिशत से अधिक न हो,इसे सुनिश्चित किया जाए। निजी स्कूलों को फीस बुकलेट जारी करना अनिवार्य किया जाए। निजी स्कूलों में पीटीए गठन अनिवार्य किया जाए। ऑनलाइन क्लासेज़ के मोबाइल डाटा खर्च की फीस से कटौती की जाए। गरीब छात्रों को ऑनलाइन क्लासेज़ से बाहर करना बन्द किया जाए। निजी स्कूलों में शिक्षा का अधिकार कानून 2009 लागू किया जाए। निजी स्कूलों में वर्ष 2014 की मानव संसाधन विकास मंत्रालय की  गाइडलाइनज़ लागू किया जाए। निजी स्कूलों पर हिमाचल प्रदेश  हाइकोर्ट का 2016 का निर्णय लागू किया जाए। निजी स्कूलों के 1997 के कानून व वर्ष 2003 के नियमों में बदलाव किया जाए। जिन स्कूलों ने ऑनलाइन क्लासेज़ नहीं लगाई हैं वहां पूरी  फीस माफ की जाए। फीस की आड़ में अभिभावकों व बच्चों को डराना धमकाना बन्द किया जाए। एच डी स्कूल जनेड़घाट व आई वी वाई स्कूल भट्ठाकुफ़्फ़र की मनमानी पर रोक लगाई जाए।

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