मजदूर विरोधी अध्यादेशों के खिलाफ सीटू का विधानसभा के बाहर हल्लाबोल प्रर्दशन

सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियनज़(सीटू) राज्य कमेटी हिमाचल प्रदेश ने हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा श्रम कानूनों में किये जा रहे मजदूर विरोधी संशोधनों व लाए गए अध्यादेशों के खिलाफ़ हिमाचल प्रदेश विधानसभा शिमला के बाहर जोरदार प्रदर्शन किया। इस दौरान डीसी शिमला के माध्यम से मुख्यमंत्री को ज्ञापन सौंपा गया व अध्यादेशों को वापिस लेने की मांग की गई। विक्ट्री टनल से शुरू हुई रैली विधानसभा चौक पहुंची जहां पर जनसभा को सीटू राष्ट्रीय सचिव डॉ कश्मीर ठाकुर,प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा,महासचिव प्रेम गौतम,उपाध्यक्ष जगत राम,सुरेश राठौर,बालक राम,सुरेंद्र बिट्टू,दलीप,मदन,विरेन्द्र लाल,बलबीर पराशर,चन्द्रकान्त वर्मा,अनिल ठाकुर,दर्शन लाल,राकेश सलमान,सीता राम,चुनी लाल आदि ने सम्बोधित किया।

           सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा व महासचिव प्रेम गौतम ने कहा है कि श्रम कानूनों में किये गए ये बदलाव व लाए गए अध्यादेश पूर्णतः मजदूर विरोधी हैं। इन अध्यादेशों से हिमाचल प्रदेश के 5175 पंजीकृत  कारखानों में कार्य करने वाले 3,50,550 मजदूर बुरी तरह प्रभावित होंगे। इन अध्यादेशों से लाखों ठेका मजदूरों की सामाजिक सुरक्षा बिल्कुल नष्ट हो जाएगी। इन अध्यादेशों के परिणाम स्वरूप लाखों औद्योगिक मजदूरों की स्थिति बंधुआ मजदूरों जैसी हो जाएगी। इन अध्यादेशों के चलते नियमित किस्म का कार्य खत्म हो जाएगा व फिक्स टर्म कार्य के ज़रिए मजदूरों का भारी शोषण होगा। इन अध्यादेशों से न्यूनतम वेतन कानून के अनुसार बनने वाले मजदूरों के रिकॉर्ड की प्रक्रिया भी खत्म हो जाएगी। इन अध्यादेशों से मजदूरों के कार्य के घण्टे आठ से बढ़कर बारह हो जाएंगे जिस से न केवल कार्यरत मजदूरों का शोषण बढ़ेगा अपितु एक-तिहाई मजदूर रोज़गार से वंचित हो जाएंगे। इस तरह ये अध्यादेश पूरी तरह मजदूरों के खिलाफ हैं। ये अध्यादेश पूंजीपतियों,उद्योगपतियों व ठेकेदारों के हित में हैं व इस से मजदूरों का शोषण बढ़ेगा। 

            उन्होंने मांग की है कि कारखाना अधिनियम,1948 की धारा 2m(i)(ii),65,85 व 106-B में किये गए मजदूर विरोधी संशोधनों को वापिस लिया जाए क्योंकि इस अधिनियम की धारा 5 किसी भी बदलाव की केवल देश पर बाहरी आक्रमण अथवा अंदरूनी एमरजेंसी में ही इज़ाज़त देती है। इस तरह कोरोना महामारी की आड़ में किये गए ये बदलाव पूरी तरह मजदूर विरोधी हैं तथा गैर संवैधानिक व गैर कानूनी हैं। इस अधिनियम में फेरबदल से कारखाना मजदूर अन्य चौदह तरह के कानूनों के दायरे से भी बाहर हो जाएंगे। इस से धारा 51,52,54 व 56 में भी मजदूर विरोधी परिवर्तन स्वतः ही हो जाएंगे। उन्होंने औद्योगिक विवाद अधिनियम,1947 की धारा 22 की उपधारा (i)(ii) व 25K उपधारा (1) में किये गए मजदूर विरोधी बदलावों को निरस्त करने की मांग की है। इस से मजदूर हड़ताल करने के बुनियादी अधिकार से भी वंचित हो जाएंगे। इस से 200 से अधिक मजदूरों वाली स्थापनाओं में छंटनी,ले ऑफ व लॉक डाउन की प्रक्रिया मजदूरों के खिलाफ हो जाएगी तथा यह पूरी तरह उद्योगपतियों व नियोक्ताओं के पक्ष में हो जाएगी। इस से धारा 25-M,25-N व 25-O में भी मजदूर विरोधी बदलाव हो जाएंगे।

         उन्होंने मांग की है कि संविदा श्रम(संचालन एवम उन्मूलन)अधिनियम,1970 की धारा 1 उपधारा 4 में किए गए मजदूर विरोधी बदलावों को रद्द किया जाए। इस से ठेकेदारों को खुली छूट मिलेगी व मजदूर कानून के दायरे से बाहर हो जाएंगे। इंडस्ट्रियल एम्पलॉयमेंट(स्टेंडिंग ऑर्डरज़)अधिनियम,1946 में स्थाई रोज़गार की जगह की गई मजदूर विरोधी फिक्स टर्म व्यवस्था को तुरन्त खत्म किया जाए। इस से मजदूरों का रोज़गार टेम्परेरी व अस्थाई हो जाएगा व वे ज़्यादातर कानूनों के दायरे से बाहर हो जाएंगे। न्यूनतम वेतन अधिनियम,1948 की धारा 18 में मेंटेनेंस ऑफ रेजिस्टरज़ एन्ड रिकोर्डज़ में किये गए मजदूर विरोधी संशोधनों को खत्म किया जाए। इस से मजदूरों का रिकॉर्ड खत्म हो जाएगा व उन्हें कभी भी नौकरी से निकालना व दण्डित करना आसान हो जाएगा।

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