सीटू ने श्रमायुक्त को सौपा मजदूरों के वेतन एवं समाजिक व अर्थिक सुरक्षा के संदर्भ में ज्ञापन
न्यूनतम वेतन सलाहकार परिषद हिमाचल प्रदेश की बैठक माननीय श्रमायुक्त एवं अध्यक्ष की अध्यक्षता में श्रमायुक्त कार्यालय हिमलैंड शिमला में सम्पन्न हुई। बैठक में श्रमिक पक्ष व नियोक्ता पक्ष के पदाधिकारी व सरकारी अधिकारी शामिल रहे। बैठक में श्रमायुक्त डॉ एस एस गुलेरिया,संयुक्त श्रमायुक्त टी आर आज़ाद,सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा,इंटक प्रदेशाध्यक्ष बाबा हरदीप सिंह,बीएमएस नेता दिनेश शर्मा तथा नियोक्ता पक्ष की ओर से सुनील बाम्बा व बॉबी सूद आदि शामिल रहे। बैठक में सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेन्द्र मेहरा ने तेईस सूत्रीय मांग पत्र श्रमायुक्त हिमाचल प्रदेश को सौंपा व इन मांगों पर त्वरित कार्रवाई की मांग की। मांग पत्र का ब्यौरा इस प्रकार है।
माननीय श्रमायुक्त एवं अध्यक्ष,
न्यूनतम वेतन सलाहकार परिषद,
हिमाचल प्रदेश शिमला।
विषय : मजदूरों के वेतन,आर्थिक व सामाजिक सुरक्षा सहित अन्य मुद्दों के सन्दर्भ में मांग-पत्र।
महोदय
मैं अपने संगठन सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियनज़(सीटू) की राज्य कमेटी हिमाचल प्रदेश की ओर से आपका ध्यान कोरोना महामारी के दौर में मजदूरों की बेहाल स्थिति की ओर आकर्षित करना चाहता हूँ। न्यूनतम वेतन सलाहकार समिति हिमाचल प्रदेश की यह बैठक आपकी अध्यक्षता में ऐसे समय में हो रही है जब दुनिया,देश व हमारा प्रदेश कोविड-19 महामारी की एक बेहद संकट ग्रस्त आपदापूर्ण स्थिति में है। इस महामारी से सबसे ज़्यादा पीड़ित व प्रभावित मज़दूर वर्ग ही है। लॉक डाउन के कारण पैदा हुई भुखमरी जैसी स्थिति में एक तरफ असंगठित व संगठित दोनों क्षेत्र के मजदूरों विशेषतौर पर प्रवासी मजदूरों का पलायन हो रहा है और दूसरी और औद्योगिक घरानों द्वारा मजदूरों को आर्थिक व सामाजिक सुरक्षा कवच देने के बजाए उनकी छंटनी की जा रही है। उन्हें केंद्र व प्रदेश सरकार के एपिडेमिक एक्ट व डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट के विशेष प्रावधानों के अनुसार 20,29 व 30 मार्च 2020 को जारी की गयी अधिसूचनाओं के बावजूद मार्च-अप्रैल 2020 के वेतन नहीं दिया जा रहा है। गौरतलब है कि इसमें मजदूरों द्वारा मार्च 2020 के किये गए कार्य तक का वेतन नहीं दिया जा रहा है जो न केवल एपिडेमिक एक्ट व डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट के प्रावधानों का उल्लंघन है अपितु वेतन भुगतान अधिनियम 1936 का भी सीधा उल्लंघन है। ऐसी स्थिति में न तो केंद्र व प्रदेश सरकार की ओर से मजदूरों की कोई मदद की जा रही है और न ही हिमाचल प्रदेश का श्रम विभाग अपनी नैतिक व भौतिक जिम्मेवारियों का निर्वाह कर रहा है। इस बैठक के माध्यम से मैं कुछ मुद्दे व मांगें इस मांग-पत्र के ज़रिए आपके व आपके माध्यम से श्रम सचिव,श्रम मंत्री व माननीय मुख्यमंत्री हिमाचल प्रदेश सरकार के ध्यानार्थ ठोस कार्रवाई हेतु प्रस्तुत कर रहा हूँ। मैं आपके व प्रदेश सरकार के संज्ञान,सकारात्मक,सहानुभूतिपूर्वक विचार-विमर्श,पहलकदमी व ठोस कार्रवाई के लिए निम्न बिंदु सुझाव सहित प्रेषित कर रहा हूँ। आशा है कि प्रदेश सरकार व आप इन पर अमल करके मजदूर वर्ग के अधिकारों की रक्षा करेंगे व उन्हें न्याय प्रदान करेंगे। मैं आपसे यह भी मांग करता हूँ कि प्रदेश सरकार द्वारा गठित न्यूनतम वेतन सलाहकार परिषद का सदस्य होने के नाते मेरे इस पत्र को श्रम सचिव,श्रम मंत्री व माननीय मुख्यमंत्री तक भी पहुंचाया जाए व मुझे इस संदर्भ में हुई कार्रवाई के प्रति सूचित किया जाए।
1. माननीय सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार दिल्ली सरकार की तर्ज पर मजदूरों को 15006 रुपये न्यूनतम वेतन दिया जाए।
2. मनरेगा में प्रत्येक मजदूर को 120 दिन का कार्य दिया जाए व उन्हें न्यूनतम वेतन दिया जाए। असेसमेंट के नाम पर उनके वेतन में कटौती न की जाए। मनरेगा के बजट में बढ़ोतरी की जाए।
3. कोरोना काल में आयकर सीमा से बाहर सभी स्थानीय व प्रवासी मजदूरों को मुफ्त राशन व 7500 रुपये की मासिक मदद दी जाए।
4. निर्माण कल्याण बोर्ड में पंजीकृत सभी निर्माण मजदूरों को 2000 रुपये की घोषित मासिक मदद तुरन्त जारी की जाए। इस मदद को गैर पंजीकृत निर्माण मजदूरों को भी दिया जाए। मजदूरों के कल्याण बोर्ड में पंजीकरण की प्रक्रिया को सरल किया जाए ताकि बी.ओ.सी.डब्ल्यू. एक्ट की औपचारिकताएं व शर्तें पूरी करने वाले सभी मजदूरों का श्रमिक कल्याण बोर्ड में पंजीकरण सुनिश्चित हो।
5. श्रम कानूनों में मजदूर विरोधी संशोधन तुरन्त बन्द किये जाएं। हिमाचल सरकार द्वारा कारखाना(फैक्टरी) मजदूरों की 8 घण्टे की डयूटी व कार्यदिवस को 12 घण्टे करने का निर्णय मजदूरों के अधिकारों पर कठोर प्रहार है। प्रदेश सरकार ने 21 अप्रैल 2020 को अधिसूचना जारी करके कारखाना अधिनियम(फैक्ट्रीज एक्ट)1948 की धारा 51,धारा 54,धारा 55 व धारा 56 में बदलाव करके साप्ताहिक व दैनिक काम के घण्टों,विश्राम की अवधि व स्प्रैड आवर्ज़ में बदलाव कर दिया है। काम के घण्टों की अवधि को आठ से बढ़ाकर बारह घण्टे कर दिया है। इस से न केवल मजदूरों की छंटनी होगी अपितु कार्यरत मजदूरों की बंधुआ मजदूरों जैसी स्थिति हो जाएगी। इसलिए इस आदेश को वापिस लिया जाए।
6. सरकार ने 13 मई 2020 को हुई कैबिनेट की बैठक में संविदा श्रमिक अधिनियम(कॉन्ट्रैक्ट लेबर एक्ट) 1970 की धारा 1(4)में संशोधन कर दिया है। इस तरह कॉन्ट्रैक्ट लेबर एक्ट में श्रम क़ानूनों को लागू करने के लिए किसी भी स्थापना में बीस ठेका मजदूरों की शर्त को बढ़ाकर तीस कर दिया है। इस तरह ठेका कर्मियों की भारी संख्या को श्रम कानून के दायरे से बाहर कर दिया है। इस आदेश को वापिस लिया जाए।
7. इसी केबिनेट बैठक में कारखाना अधिनियम(फैक्ट्रीज़ एक्ट) 1948 की धारा 2(m)(i),2(m)(ii),65(3)(iv)व 85(1)(i) में मजदूर विरोधी परिवर्तन किये गए हैं तथा कारखाना की परिभाषा को पूरी तरह बदल कर रख दिया गया है। इसके अनुसार ऊर्जा संचालित कारखाना की सीमा को दस से बढ़ाकर बीस मजदूर व बगैर ऊर्जा के संचालित कारखाना की सीमा को बीस से बढ़ाकर चालीस मजदूर करके मज़दूरों की भारी संख्या को कारखाना अधिनियम के दायरे से बाहर कर दिया गया है। इसी अधिनियम की धारा 65(3) में संशोधन करके ओवरटाइम कार्य के घण्टों को 75 से बढ़ाकर 115 कर दिया गया है। इस अधिनियम में धारा 106(b) जोड़ कर उद्योगपतियों को कानून की अवहेलना पर दी जाने वाली सज़ा व कठोर कार्रवाई में बिना शर्त छूट दी गयी है। यह आदेश मजदूर विरोधी है। कारखाना अधिनियम में बदलाव व श्रम कानूनों के निलंबन से मजदूर एम्प्लॉईज़ कंपनसेशन एक्ट 1923,वेतन भुगतान अधिनियम 1936,इंडस्ट्रियल एम्प्लॉयमेंट(स्टैंडिंग ऑर्डरज़) एक्ट 1946,फैक्ट्रीज एक्ट 1948,न्यूनतम वेतन कानून 1948,ईएसआई एक्ट 1948,ईपीएफ एक्ट 1952,मेटरनिटी बेनेफिट एक्ट 1961,बोनस एक्ट 1965,इकुअल रयुमनरेशन एक्ट 1976,इंटर स्टेट माइग्रेंट वर्कमैन एक्ट 1979 आदि चौदह तरह के श्रम कानूनों के दायरे से मजदूर बाहर हो जाएंगे। इस आदेश को वापिस लिया जाए।
8. प्रदेश सरकार ने कैबिनेट बैठक में औद्योगिक विवाद अधिनियम(इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट्स एक्ट) 1947 की धारा 22(1),25(F)(b) व 25(K) में बदलाव के लिए उचित कदम उठाने की सिफारिश की बात की है। यह पूर्णतः मजदूर विरोधी है। सरकार के इन कदमों ने मजदूरों पर कई प्रकार के हमलों का दरवाजा खोल दिया है। धारा 22(1) में बदलाव से मजदूरों के हड़ताल करने के अधिकार पर कटौती होगी। धारा 25(F)(b) में बदलाव से छंटनी व छंटनी भत्ता की पक्रिया पूरी तरह उद्योगपतियों के पक्ष में हो जाएगी। धारा 25(K) में बदलाव से छंटनी,ले ऑफ व तालाबंदी के विशेष प्रावधानों के लिए मजदूरों की संख्या को एक सौ से बढ़ाकर तीन सौ करने की सिफारिश की गई है जिस से प्रदेश के दो-तिहाई उद्योगों के हज़ारों मजदूरों को भारी नुकसान होगा। इस निर्णय पर रोक लगाई जाए।
9. केंद्र सरकार ने ईपीएफ हिस्सेदारी को 12 प्रतिशत से घटाकर 10 प्रतिशत करने की घोषणा की है। यह कदम मजदूर विरोधी है व लंबे समय के लिए उद्योगतियों को फायदा पहुंचाने वाला है। इस निर्णय को वापिस लिया जाए।
10. प्रदेश के सैंकड़ों उद्योगों के हज़ारों मजदूरों को मार्च-अप्रैल 2020 के वेतन का भुगतान नहीं किया गया है। वेतन भुगतान अधिनियम 1936 के अनुसार मजदूरों को वेतन का भुगतान तुरन्त करवाया जाए। इसकी अवहेलना करने वाले नियोक्ताओं के खिलाफ सख्त कार्रवाई अमल में लाई जाए। इस संदर्भ में आपको 11 मई 2020 को दिए गए पत्र के माध्यम से दी गयी उन उद्योगों की सूची एक बार पुनः संलग्न कर रहा हूँ जिन्होंने इस वेतन की अदायगी मजदूरों को नहीं की है। इसके अलावा भी प्रदेश में सैंकड़ों अन्य उद्योग हैं जिन्होंने मजदूरों को इस अवधि का वेतन भुगतान नहीं किया है।
11. ठेका व आउटसोर्स कर्मचारियों को पक्का किया जाए। कोरोना के लॉक डाउन काल में इन सभी मजदूरों को पूरा वेतन दिया जाए। किसी भी मजदूर की छंटनी न की जाए।
12. कोरोना के नाम पर पी.एम. केयरज़ व मुख्यमंत्री राहत कोष में बहुत धन एकत्रित हुआ है इसे मजदूरों व आम जनता के लिए खर्च किया जाए। कोरोना की आड़ में कर्मचारियों के वेतन से जबरन कोई फंड न काटा जाए और न ही उन पर इसके लिए कोई दबाव बनाया जाए।
13. वर्ष 2003 के बाद नियुक्त कर्मचारियों के लिए एनपीएस की जगह ओपीएस सुविधा बहाल की जाए। एसएमसी शिक्षकों व इस तरह के अन्य कर्मचारियों को समय पर वेतन का भुगतान किया जाए व उन्हें नियमित किया जाए।
14. रेहड़ी फड़ी तहबजारी का कार्य करने वाले लोगों को कोरोना काल में 7500 रुपये की मासिक मदद दी जाए।
15. टैक्सी,ट्रक,बस व अन्य कमर्शियल वाहनों की कोरोना काल की मासिक किश्तें माफ की जाएं। ड्राइवर,कंडक्टर व मैकेनिक आदि को 7500 रुपये मासिक की आर्थिक मदद दी जाए।
16. कोरोना महामारी का मुकाबला करने के लिए सरकार स्वास्थ्य क्षेत्र पर अधिक खर्च करे। अस्पतालों में पीपीई किट व अन्य उपकरणों का प्रबंध किया जाए। डॉक्टर,नर्सिंग स्टाफ,अस्पताल के नियमित,आउटसोर्स व ठेका कर्मियों,नेशनल हैल्थ मिशन कर्मियों,आशा व आंगनबाड़ी जैसे फ्रंटलाइन वर्करज की सुरक्षा के पुख्ता इंतज़ाम किया जाए व सभी को 50 लाख रुपये का स्वास्थ्य बीमा कवर दिया जाए।
17. खाद्य वस्तुओं,पानी,बिजली,बैंक,टेलीफोन,बीमा,पोस्टल,ट्रांसपोर्ट,पंचायत व नगर निकायों में कार्यरत सभी कर्मचारियों,सफाई कर्मियों,ग्रामीण चौकीदारों,शिक्षा,पुलिस व अन्य सभी सार्वजनिक आवश्यक सेवाओं में लगे कर्मियों की उचित देखभाल व जनता की रक्षा के लिए समुचित सुरक्षा का प्रबंध किया जाए।
18. जन स्वास्थ्य व्यवस्था व सुविधाओं की मजबूती के लिए विशेष व व्यापक पैकेज की घोषणा की जाए।
19. भारत व हिमाचल सरकार कोरोना महामारी के वॉरियरज़ बीमा,बैंकों,बीएसएनएल,बिजली बोर्डों,रेलवे व अन्य सरकारी विभागों को बेचने की प्रक्रिया तुरन्त बन्द करे।
20. मिड डे मील को हिमाचल उच्च न्यायालय के आदेशों के अनुसार सरकार छुट्टियों का वेतन सुनिश्चित करे। फरवरी व मार्च के वेतन में की गयी कटौती पर प्रदेश सरकार रोक लगाए व दोनों महीनों के पूर्ण वेतन का भुगतान करे।
21. होटल मजदूरों,कुलियों,गाइड ,लीज़धारक होटल संचालकों,निजी स्कूलों के अध्यापकों,कर्मचारियों,दुकानदारों,सेल्जमैन आदि को 7500 रुपये की आर्थिक मदद दी जाए।
22. आंगनबाड़ी व आशा कर्मियों को हरियाणा की तर्ज़ पर वेतन दिया जाए। मिड डे मील कर्मियों को प्रदेश सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम वेतन दिया जाए। इन सभी स्कीम वर्करज को वर्ष 2013 में हुए 45वें भारतीय श्रम सम्मेलन के अनुसार वर्कर का दर्जा देकर नियमित किया जाए।
23. कोरोना काल में 7500 रु प्रति महीना की आर्थिक मदद के साथ ही अपने घर जाने व दोबारा डयूटी पर वापिस लौटने हेतु सभी मजदूरों के यातायात किराया सहित सभी प्रकार के खर्चे का वहन प्रदेश सरकार करे। इन मजदूरों के लिए यातायात का प्रावधान भी प्रदेश सरकार करे।
अतः आपसे अनुरोध है कि इन मजदूरों की आर्थिक व सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु तुरन्त ठोस पहलकदमी करें व मजदूरों को न्याय प्रदान करें।
दिनांक : 20 मई,2020
विजेंद्र मेहरा
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